जड़ता मानसिक, प्राणिक, भौतिक, अवचेतन होती है । भौतिक जड़ता मानसिक जड़ता उत्पन्न कर सकती है । प्राणिक जड़ता लगभग हमेशा भौतिक को निष्प्राण, मलिन तथा सुस्त बना देती है । - श्रीअरविन्द

श्रीअरविन्द आश्रम

 

श्रीअरविन्द-आश्रम का विकास श्रीअरविन्द और श्रीमाँ के आदर्शो के सहज प्रवाह एवं अभिव्यक्ति का परिणाम है। प्रारम्भ में श्रीअरविन्द के कुछ थोड़े-से सहयोगी ही पारिवारिक भाव के साथ रहते थे। जैसे-जैसे वर्ष व्यतीत होते गए, अधिकाधिक लोग श्रीअरविन्द के नये मानव की परिकल्पना के प्रति आकर्षित होते गए। 1920 में जब श्रीमाँ अंतिम रूप् से पांडिचेरी आ गयीं, लोगों की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ने लगी और एक सामूहिक आध्यात्मिक जीवन मूर्त रूप लेने लगा।

प्रायः आश्रम का यह अर्थ लगाया जाता है कि यह कोई अलग-थलग और एकान्तवास वाला स्थान होगा जहाँ यति और तपस्वी निवास करते होंगे। परंतु वैदिक काल में अथवा उपनिषद् एवं महाकाव्यों के युग में इस शब्द का उक्त अभिप्राय नहीं होता था। श्रीअरविन्द ने सन्यास अथवा तितिक्षा को उनके सामान्यतः ग्राह्य अर्थों में अपने योग का अंग कभी स्वीकार नहीं किया। अतः पांडिचेरी स्थित श्रीअरविन्द-आश्रम, आश्रमों के बारे में प्रचलित विचारों से बिलकुल भिन्न है।

आश्रम गुरु का निवास होता था जिसके आस-पास सभी आयु-वर्ग के लोग, प्रायः पुरूष और स्त्रियां दोनों ही, विभिन्न प्रकार के ज्ञान की जिज्ञासा लेकर एकत्र हुआ करते थे। गुरू, एक पिता के समान, उनकी देख-भाल किया करता था, उन्हें अपना सर्वोच्च ज्ञान देता था और उचित समय पर उन्हें अपने भावी विकास का मार्ग चुनने के लिये अनुमति देता था। इस प्रकार आश्रम एक महानतर एवम् व्यापकतर आधार पर एक परिवार के समान होता था। उसके पीछे प्रेरणा यह नहीं होती थी कि वह अनुर्वर वैराग्य का स्थान है अपितु यह कि वहाँ रह कर जीवन और उसकी सभी संभावनाओं को सहर्ष स्वीकारा जाता था।

श्रीअरविन्द-आश्रम उपर्युक्त व्यापक एवं जीवंत अर्थो में एक आश्रम है। यहाँ रहने वाले साधक एक ऐसे जीवन के अन्वेषी और अभीप्सु हैं जो आध्यात्मिक अनुभूति पर आधारित हो और उसका उद्देश्य इस धरती पर और भौतिक अस्तित्व के अंतर्गत दिव्य जीवन की उपलब्धि हो। यहाँ चेतना और प्रकति के परिवर्तन को महत्व दिया जाता है जिससे मानवता और समाज को विकास के आगामी उच्चतर स्तर के लिये तैया किया जा सके। श्रीअरविन्द-आश्रम की सभी गतिविधियों की कंेद्रीय प्रेरणा उक्त विश्वास या सत्य है। इन गतिविधियों में ऐसे सेवा-कार्य हैं जो एक बृहद समुदाय की सुविधा के लिये आवश्यक हैं। इनमें कृषि, उद्योग, कार्यशाला तथा अंतर्राटीय शिक्षा-केंद्र शामिल हैं।

प्रत्येक आश्रमवासी अपने लिये उपयुक्त कार्य का चुनाव करता है और उसे निःस्वार्थ सेवा भाव तथा पूर्णता के साथ संपन्न करता है। ऐसा करते हुए वह इस बात को कभी नहीं भूलता कि उसका उद्देश्य सर्वांगीण रूपांतरण है।